दीवालों पे सजी हुई खामोश तस्वीरों की तरह ।
इक शख्स रहेता हे मुज में जंजीरो की तरह ।
ना सुख की चाह, ना हो कोई गम की परवाह।
अगर खुश रहना हे तो जिओ, फकीरो की तरह।
कहते थे वो, कुछ भी हो मगर साथ नही छोड़ेंगे।
रहते थे जो दिल में, हाथ की लकीरों की तरह।
खेल हो शतरंज का हो, खेलने में भी मजा आये।
तु राजा सही, हम भी चाल चलेंगे वजीरों की तरह।
काफी सारे दोस्त,इक कलम, और सच्चा दिल हे ।
यु ही जीता हु, जीना नही आता मुजे अमीरो की तरह।
विपुल बोरीसा
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इसलिए लगता है की हारा हुआ हूँ,
इश्क़ की गर्दिश में भी ग़ालिब खड़ा हूँ.
दर्द ! तेरा दोस्त हूँ ईसीलिए तो,
रोज देता दिल मैं तुझको आसरा हूँ
मैं कहाँ हूँ और कैसा हूँ,पता है ?
खुद ही खुद में मुद्दतो से लापता हूँ .
कौन समझेगा हमारी बात दिल की ?
शेख की बस्ती में रहता हूँ, ज़दा हूँ.
नफ़रतें गर बढ़ गई हो तो ये प्याला-
जब जी चाहे तोड़ देना, मयकदा हूँ.
ईतनी आसान होती है महोब्बत!
जान देना जान पे, में तो फ़िदा हूँ.
ये सजा किस बात की तुम दे रहे हो,
इश्क़ करता हूँ 'शहादत', बे ख़ता हूँ.
संदीप वसावा ( शहादत मिर्ज़ा )
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दिल का आंगन खाली खाली
इक शख्स रहेता हे मुज में जंजीरो की तरह ।
ना सुख की चाह, ना हो कोई गम की परवाह।
अगर खुश रहना हे तो जिओ, फकीरो की तरह।
कहते थे वो, कुछ भी हो मगर साथ नही छोड़ेंगे।
रहते थे जो दिल में, हाथ की लकीरों की तरह।
खेल हो शतरंज का हो, खेलने में भी मजा आये।
तु राजा सही, हम भी चाल चलेंगे वजीरों की तरह।
काफी सारे दोस्त,इक कलम, और सच्चा दिल हे ।
यु ही जीता हु, जीना नही आता मुजे अमीरो की तरह।
विपुल बोरीसा
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इसलिए लगता है की हारा हुआ हूँ,
इश्क़ की गर्दिश में भी ग़ालिब खड़ा हूँ.
दर्द ! तेरा दोस्त हूँ ईसीलिए तो,
रोज देता दिल मैं तुझको आसरा हूँ
मैं कहाँ हूँ और कैसा हूँ,पता है ?
खुद ही खुद में मुद्दतो से लापता हूँ .
कौन समझेगा हमारी बात दिल की ?
शेख की बस्ती में रहता हूँ, ज़दा हूँ.
नफ़रतें गर बढ़ गई हो तो ये प्याला-
जब जी चाहे तोड़ देना, मयकदा हूँ.
ईतनी आसान होती है महोब्बत!
जान देना जान पे, में तो फ़िदा हूँ.
ये सजा किस बात की तुम दे रहे हो,
इश्क़ करता हूँ 'शहादत', बे ख़ता हूँ.
संदीप वसावा ( शहादत मिर्ज़ा )
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दिल का आंगन खाली खाली
जेसे तन मन खाली खली
मजबूरी बूढा कर देंगी
सारा योवन खाली खाली
सिर्फ मुझे ही रक्खा कोरा
बरसा सावन खाली खाली
हरी भरी दुनिया है केवल
आवारा मन खाली खाली
जब से मुझसे वो रूठा है
मेरा दरपन खाली खाली
आँखों में सपने ही सपने
फिर भी दामन खाली खाली
महबूब सोनालिया
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हर बात में लब पे लाउ,ये जरूरी तो नही ।
तुम्हें हर वक़्त नजर आउ, ये जरूरी तो नही ।
माना के दूर हे, रश्मो-रिवाज़ से अब मजबूर हे ।
तुम कहो और में भूल जाउ, ये जरुरी तो नही ।
बड़ी शिद्दत से अब वक़्त जाता हे मेरा,धीरे-धीरे ।
हर वक़्त, वक़्त को में हीें मनाउ,ये जरूरी तो नही ।
हाथ तुमने भी थामा था,तब जा के सफर सुरु हुआ ।
में ही खुद को हरबार समजाउ, ये जरूरी तो नही ।
इश्क़ जिन्दा रखेंगे हो चाहे कुछ भी,ये वादा तुमारा था ।
हर बात में ही तुम्हे याद दिलाउ, ये जरुरी तो नही ।
--- विपुल बोरीसा
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एक चिड़िया आबोदाना चाहती है और क्या
ज़िंदगी इतना ख़ज़ाना चाहती है और क्या
दुनियाभर की दौलतें कम हैं अमीरी के लिए
मुफ़लिसी दो जून खाना चाहती है और क्या
ऐ मुसाफ़िर ! सच समझ ये एक अपनी आरज़ू
धूप में इक आशियाना चाहती है और क्या
जिसको ढँकने के लिए दो गज ज़मीं काफ़ी है दोस्त !
अपनी ख़ातिर वो ज़माना चाहती है और क्या
मेरे 'दीक्षित' तुझपे मैं क़ुरबान हो जाऊँ कभी
दोस्ती ये हक़ निभाना चाहती है और क्या
--- अवनीश कुमार दीक्षित
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मुजे किताबों में सजाया हुआ, गुलाब रख ।
हकीकत ना सही, इक प्यारा सा ख्वाब रख ।
गैरत इतनी हो आँखे कभी झुके ना किसी से,
भले तु कही भी अपने चेहरे पे नक़ाब रख ।
तु कितना रहेगा गुम इस दुनिया की भीड़ में,
चंद लम्हें रख, पर हो सके तो ला-जवाब रख ।
मन्दिरो में या मस्जिदों में तुजे खुदा मिलेगा नही,
खुद में खुदा को पाना हे तो थोड़ी सी शराब रख ।
झुकाया था हाथ मेने, तो थामा उसने भी था,
ऐ खुदा सजा-ए-इश्क़ में बराबर का हिसाब रख ।
--- विपुल बोरीसा
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किसी से दोस्ती में,दुश्मनी में
बड़ी जद्दो-जहद है ज़िन्दगी में
बड़ा ही दम घुटा है तीरगी में
नज़र आता नहीं कुछ रौशनी में
ख़ुशी हर रोज़ दस्तक रही है
हमारी मुंतज़िर है देहरी में
खुशी क्यों आजकल हासिल नहीं है
किसी भी आइने से दोस्ती में
जिसे देखो वही रहबर बनाहै
न जाने क्या सिफ़त है रहज़नी में
अमीरी आ गयी तो दूर हैं सब
बहुत अपने बने थे मुफलिसी में
समय के साथ चल कुछ तो मिलेगा
ख़ज़ाना है मुसल्सल आगही में
--- किशन स्वरूप
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ज़िंदगी के दर्द का अंबार देखा चाहिए आदमी का आदमी से प्यार देखा चाहिए
उसको हमने और पीछे और पीछे कर दिया
जिसको हरदम हर कहीं हर बार देखा चाहिए
आने जानेवाली हैं ये दुनियाभर की दौलतें
सबसे बढ़कर शख़्स का किरदार देखा चाहिए
वो वहाँ है मैं यहाँ हूँ हो रही है बातचीत
दिल का दिल से जुड़नेवाला तार देखा चाहिए
अपने गुलशन में गए पर देखने की बात क्या
फूल देखा चाहिए या ख़ार देखा चाहिए
कुछ भी 'दीक्षित' कह रहे हो शायरी के नाम पर
कुछ तो इन अशआर का मेयार देखा चाहिए
अवनीश कुमार दीक्षित
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मेरी सुबह क़ीमती है मेरी शाम क़ीमती है
मेरे लब पे मेरे आक़ा तेरा नाम क़ीमती है
तेरी रहमतों के सदके इक जाम भर के दे दे
मेरी प्यास कुछ नहीं है तेरा जाम क़ीमती है
दुनियामें उनकीरहमत महशरमें भी शफाअत
आग़ाज़ क़ीमती था अंजाम क़ीमती है
कह दे हवा से कोई यहाँ शोर न मचाये
यादे नबी में गुम हैं आराम कीमती है
धब्बा न तुम लगाना हर दाग़ से बचाना
अय हाजियो तुम्हारा एहराम क़ीमती है
महशर में देख लेना ज़ामिन बनेंगे दोनों
ये दरूद क़ीमती है ये सलाम क़ीमती है
है असद के भी गले में तेरे नाम का ही पट्टा
उसे क्या कोई ख़रीदे वो ग़ुलाम क़ीमती है
असद अजमेरी
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अब गले से तेरे लगा ले मुझे,
या सुला दे या फिर जगा ले मुझे;
मैं लकीरों में तो नहीं सामिल पर,
ख्वाब सा आँख में सजा ले मुझे;
थोड़ी नजरों की इनायत कर दे,
चुपके से मुज से तूँ चुरा ले मुझे;
मिट न पायेगा ये उल्फत का जुनूँ,
चाहे जितना भी आजमा ले मुझे,
तेरे होने से है वजूद अपना,
कोई गर शक है तो भुला ले मुझे;
मौत से भी तो पर्दा मुमकिन है,
अपनी आगोश में छुपा ले मुझे!
हिमल पंड्या
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